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कैसे जाऊँ सखी मैं पनियां भरन,
देखो कान्हा खड़े है बिरज की ओर।।
पनघट पनघट नटवर नागर,
राहें चलत मुझको नित छेड़े,
वो तो माने न कोई बात सखी,
देखो कान्हा खड़े है बिरज की ओर।।
पनियां भरत मोरी मटकी फोड़ी,
मै बोली तो मेरी बइया मरोड़ी,
मेरो नाम होत बदनाम सखी,
देखो कान्हा खड़े है बिरज की ओर।।
यमुना तट पर बंसी बजाये,
मनमोहन सबके मन भाये,
ललिता चंदा गोपीयन के संग,
होली खेले रास रचाये,
लीला नीसदिन दिखाये वो सांझ से भोर,
देखो कान्हा खड़े है बिरज की ओर।।
नित नित मोरी राह तकत है,
नटखट मौसे जब भी मिलत है,
ढीट ना माने झगड़ा करत है,
मोरी झटके सिर से चूनर चितचोर,
देखो कान्हा खड़े है बिरज की ओर।।
कैसे जाऊँ सखी मैं पनियां भरन,
देखो कान्हा खड़े है बिरज की ओर।।}]