हे राम अवध के राजा तुझे कौन सी दुविधा घेरे | hey ram awadh ke raja tujhe konsi duvidha ghere

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हे राम अवध के राजा,
तुझे कौन सी दुविधा घेरे,
जन जन के भाग्य विधाता,
क्या लिखा भाग्य में तेरे।।

क्या पुछ रहे है तुझसे,
इन महलों के सन्नाटे,
वो कौन सा दुःख तू जिसको,
सीता से भी ना बांटे,
मर्यादाओं की बेड़ी,
वचनों के भीषड़ ताले,
पुरखों के सम्मुख तूने,
स्वयंमेव स्वयं पर डाले।।

रघुकुल के संचित यश का,
अब तू ही उत्तरदाई,
उस राह तुझे भी चलना,
पुरखों ने जो राह बनाई।।

जो तुझको समझ ना पाए,
सचमुच वे लोग अभागे,
तू रख दे अपनी पीड़ा,
अपने आराध्य के आगे,
शिव जी तरह तुझको भी,
जीवन विष पीना होगा,
इन विषम परिस्थितियों से,
लड़ लड़ कर जीना होगा।।

हे राम अवध के राजा,
तुझे कौन सी दुविधा घेरे,
जन जन के भाग्य विधाता,
क्या लिखा भाग्य में तेरे।।

स्वर / रचना – श्री रवींद्र जैन।
प्रेषक – महेश कुमार।
7068575014

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