भक्तों के खातिर मईया धरती है रुप हजार | bhakto ke khatir maiya dharti hai roop hajar

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भक्तों के खातिर मईया,
धरती है रुप हजार,
ना जाने किस रूप में,
हो जाये दीदार।।

तर्ज – देना हो तो दीजिये।

उसे पुकारो कोई नाम से,
माँ संकठा अम्बे रानी,
लक्ष्मी काली सरस्वती,
शेरा वाली या वरदानी,
माँ के चरणों से जिस दिन,
तेरा जुड़ जायेगा तार,
ना जाने किस रूप में,
हो जाये दीदार।।

दया दृष्टि है सब पर माँ की,
यह विश्वास हमारा है,
पर कितनी श्रद्धा भक्ति से,
माँ का नाम उचारा है,
तेरी विनती वो सुन लेगी,
तेरा भर देगी भण्डार,
ना जाने किस रूप में,
हो जाये दीदार।।

महिमा अपरम्पार है माँ की,
देव दनुज सबने ध्याया,
‘परशुराम’ क्या शक्ति बिन कोई,
एक कदम है चल पाया,
तेरे जीवन की नैया की,
माँ ही है खेवनहार,
ना जाने किस रूप में,
हो जाये दीदार।।

भक्तों के खातिर मईया,
धरती है रुप हजार,
ना जाने किस रूप में,
हो जाये दीदार।।

लेखक एवं प्रेषक – परशुराम उपाध्याय।
श्रीमानस-मण्डल, वाराणसी।
93073 86438
स्वर – रुचि मूँदड़ा।

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