तू जब जब हमको बुलाये हम दौडे आये भवन तुम्हारे | tu jab jab humko bulaye hum dode aaye

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तू जब जब हमको बुलाये हम दौडे आये भवन तुम्हारे ।।
तर्ज – तू जब जब मुझको पुकारे

श्लोक – तेरे भवन के अजब नज़ारे, तेरे गूँज रहे जयकारे,
बाण गंगा के पावन किनारे, भक्तो ने डेरे डाले।।

तू जब जब हमको बुलाये,
हम दौडे आये भवन तुम्हारे,
माँ तेरी बस एक इशारे,
चले आये तेरी द्वारे,
हमे अपना बनाले चरणों से लगाले,
और जाये माँ कहाँ ओ मेरी वैष्णो माँ ॥॥

मैया तुम्हारे हाथ मे रहता सदा त्रिशूल है,
तेरी ही किरपा से ओ माँ खिलते चमन मे फुल है,
पालकी मे बेठ कोई दर पे तुम्हारे आ रहा,
कोई लगा के जयकारे चढ़ता चडाई जा रहा,
पार सबको उतारे जो भी आये तेरे द्वारे,
थाम लेती हाथ माँ, ओ मेरी वैष्णो माँ ॥॥

दर्शन को आती भीड़ माँ दर तेरे शेरों वाली,
नौ रातों मे भवन की माँ शोभा बड़ी निराली,
जगते कही है ज्योत माँ गूंजे कही जयकारे है,
तेरी एक झलक को पाने को आते तुम्हारे प्यारे है,
तेरे छू के चरण हो दुख का हरण,
सुख बांटे तू सदा, ओ मेरी वैष्णो माँ ॥॥

आते रहेंगे वैष्णो माँ तेरे दर पे हर साल हम,
छाले पड़ जाये पाँव मे लेकिन ना रुकेंगे हम,
तक़दीर सभी की जगती है माँ तेरे दरबार मे,
करना हमको भी निहाल माँ ममता के प्यार से,
हर साल बुलाना हमे दर्श दिखाना,
ये है दील की तमन्ना,ओ मेरी वैष्णो माँ ॥॥

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