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तू ही करतार है कृष्णा,
दोहा – या अनुरागी चित्त की,
गति समझे नहीं कोई,
ज्यों ज्यों डूबे श्याम रंग,
त्यों त्यों उज्जवल होई।
तू ही करतार है कृष्णा,
तू ही करतार हैं,
मनमोहन बांके श्री गिरधारी,
तू ही करतार हैं कृष्णा।।
द्रुपद सुता की तूने,
लाज बचाई,
गज को ग्राह,
फंसे जल माही,
ओ दाता ओ विधाता,
ओ दाता ओ विधाता,
करके सुरत तिहारी,
तू ही करतार हैं कृष्णा।।
मन मेरा मीरा रानी,
तन राधे रानी,
नैनो में समाई तेरी,
सूरत सयानी,
तन नाचे मन गाए,
तन नाचे मन गाए,
करके सुरत तिहारी,
तू ही करतार हैं कृष्णा।।
तू हीं करतार हैं कृष्णा,
तू ही करतार हैं,
मनमोहन बांके श्री गिरधारी,
तू ही करतार हैं कृष्णा।।
स्वर – श्री अशोकानंद जी महाराज।
प्रेषक – डॉ सजन सोलंकी।
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