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मोहन की मुरलिया,
मचाये बड़ा शोर,
ब्रज बालाएं झूम रही है,
मधुबन जी की और,
सावन का महीना,
मचाये बड़ा शोर,
ब्रज बालाएं झूम रही है,
मधुबन जी की और।।
तर्ज – सावन का महीना।
ओढ़ के चुनरिया करती,
श्याम को इशारा,
मेरे मन मंदिर दे दो,
दिल को सहारा,
मोरे बनवारी,
गिरधारी चितचोर,
ब्रज बालाएं झूम रही है,
मधुबन जी की और।।
साड़ियां छिपाते कबहुँ,
करते छेड़ खानी,
फोड़ देते मटकी,
छिपाते मटानी,
करते क्यों नादानी,
बताओ माखनचोर,
ब्रज बालाएं झूम रही है,
मधुबन जी की और।।
मोहन की मुरलिया,
मचाये बड़ा शोर,
ब्रज बालाएं झूम रही है,
मधुबन जी की और,
सावन का महीना,
मचाये बड़ा शोर,
ब्रज बालाएं झूम रही है,
मधुबन जी की और।।
स्वर – विजय प्रकाश वैष्णव।}]