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स्वागतं कृष्णा शरणागतं कृष्णा,
स्वागतं सुस्वागतं शरणागतं कृष्णा,
स्वागतं सुस्वागतं शरणागतं कृष्णा,
स्वागतं कृष्णा शरणागतं कृष्णा।।
अभी आता ही होगा सलोना मेरा,
हम राह उसी की तका करते हैं,
कविता-सविता नहीं जानते हैं,
मन में जो आया सो बका करते हैं।।
पड़ते उनके पद पंकज में,
चलते-चलते जो थका करते हैं,
उनका रस रूप पिया करते हैं,
उनकी छवि-छाक छका करते हैं।।
अपने प्रभु को हम ढूंढ लियो,
जैसे लाल अमोलख लाखों में,
प्रभु के अंग में जितनी नरमी,
उतनी नर्मी नहीं माखन में।।
स्वागतं कृष्णा शरणागतं कृष्णा,
स्वागतं सुस्वागतं शरणागतं कृष्णा,
स्वागतं सुस्वागतं शरणागतं कृष्णा,
स्वागतं कृष्णा शरणागतं कृष्णा।।
स्वर – मृदुल कृष्ण जी शास्त्री।
प्रेषक – जितेंद्र कृष्ण पाराशर जी।
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