ऊँचा ऊँचा शत्रुंजयना शिखरो सोहाय जैन स्तवन | uncha uncha shatrunjay na shikharo

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ऊँचा ऊँचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय,
वच्चे मारा दादा केरा,
डेरा जगमग थाय।।

दादा तारी यात्रा करवा,
मारुं मन ललचाय -२,
तळेटीए शीश नमावी,
चढवा लागुं पाय -२,
पावनगिरिनो स्पर्श थातां,
पापो दूर पलाय,
ऊंचा ऊंचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय।।

लीली लीली झाडीयो मा,
पंखी करे कलशोर -२,
सोपान चढता चढता जाणे,
हयु अषाढियानो मोर -२,
कांकरे कांकरे सिद्धा अनंता,
लळी लळी लागुं पाय,
ऊंचा ऊंचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय।।

पहेली आवे रामपोळने,
त्रीजी वाघणपोळ -२,
शांतिनाथनां दर्शन करीए,
पहोंच्या हाथीपोळ -२,
सामे मारा दादा केरा,
दरबार देखाय,
ऊंचा ऊंचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय।।

दौड़ी दौड़ी आवुं दादा,
दर्शन करवाने काज -२,
भाव भरीने भक्ति करुं,
साधु आतम काज -२,
माता मरू देवी नां नंदन भेटी,
जीवन पावन थाय,
ऊंचा ऊंचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय।।

क्षमाभावे ॐकार पदनुं,
नित्य करिश हुं तो जाप -२,
दादा तारा गुणला गातां,
कापीश भवनां पाप -२,
पद्मविजय’नां हये आज,
आनंद उभराय,
ऊंचा ऊंचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय।।

ऊँचा ऊँचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय,
वच्चे मारा दादा केरा,
डेरा जगमग थाय।।

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