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ॐ जय लव कुश देवा,
ॐ जय लव कुश देवा,
आरती भगत उतारें,
संत करें सेवा।।
तर्ज – ॐ जय जगदीश हरे।
श्रावण मास की पूनम,
लव कुश जनम लिये,
सकल देव हर्षाये,
ऋषि मुनि धन्य किये।।
वाल्मीकि जी के मढ़ में,
बचपन बीत गया,
अस्त्र शस्त्र की शिक्षा,
चित आनंद भया।।
अपने प्रिय गुरुजन की,
आज्ञा सिरो धाई,
मात सिया चरणों में,
सुत प्रीति पाई।।
विजयी विश्व का परचम,
अवध में लहराया,
अश्व मेघ का घोड़ा,
लव कुश मन भाया।।
बीर बली बंधन में,
लक्ष्मण जान गए,
पिता पुत्र फिर रण में,
सन्मुख आन भये।।
दुखी जनो के प्रभुजी,
दुर्गुण चित्त न धरो,
शरणागत जो आवे,
ताकि विपति हरो।।
लुव कुश देव की आरती,
जो कोई जन गावे,
‘पदम्’ कहत वह प्राणी,
सुख संपत्ति पावे।।