नौकर रख लो लखदातार,
खड़ा रहूं मैं तेरी शरण में,
बनकर सेवादार,
कि नौकर रखलो लखदातार।।
नौकर बन जाऊँ श्यामधणी का,
झाड़ा मिल जाये मोरछड़ी का,
कृपा की ना होती जो आदत तुम्हारी,
तो सूनी ही रहती अदालत तुम्हारी,
गरीबो की दुनिया है आबाद तुमसे,
गरीबों से है बादशाहत तुम्हारी,
ना हम होते मुल्जिम ना तुम होते हाकिम,
अरे सूनी ही रहती अदालत तुम्हारी,
तुम्हारी ही उल्फत दृग ‘बिन्दु’ है ये,
तुम्हें सौंपते है अमानत तुम्हारी,
तुम्हें सौंपते है अमानत तुम्हारी,
तेरे सहारे इस जीवन के,
कट जाए दिन चार,
नौकर रखलो लखदातार।।
मैं तुमको ये दिल और जिगर दे रही हूँ,
गुनाहों के अपनी नजर दे रही हूँ,
मुकदमा भी होगा अदालत भी होगी,
मैं मरने की अपने खबर दे रही हूँ,
जो आज्ञा दो वही करूंगा,
वादे से मैं नहीं मुकरूंगा,
उतने में ही सबर करूंगा,
उतने में ही सबर करूंगा,
जितना दो करतार,
की नौकर रखलो लखदातार।।
जो आज्ञा दो वही करूंगा,
वादे से मैं नहीं मुकरूंगा,
अपनी चौखट का कुत्ता बनालो मुझे,
जहाँ बाधोगे बाबा मै बधं जाऊँगा,
पेट भरकर नहीं मुझे रोटी मिले,
तेरे भक्तों की झूठन पे पल जाऊँगा,
दोगे दर्शन तो मैं अपने घर जाऊँगा,
वर्ना बदनाम तुझको मैं कर जाऊँगा,
बदनामी तो होगी तुम्हारी कन्हैया,
चौखट पर तेरी मैं मर जाऊँगा,
ओ नादान ‘किशन ब्रजवासी’,
करदो भव से पार,
की नौकर रखलो लखदातार।।
नौकर रख लो लखदातार,
खड़ा रहूं मैं तेरी शरण में,
बनकर सेवादार,
कि नौकर रखलो लखदातार।।