जुल्मी जाडो भोत पड़े छै,
गोबिन्द पौष बडा खावो।।
पौष मास लागै अति सुन्दर,
कञ्चण थाळ धरयो चोकी पर,
आसण़ बिछा दियो मखमल रो,
गोबिन्द पौष बडा पावो,
जुल्मी जाडो भोत पड़ै छै,
गोबिन्द पौष बडा खावो।।(१)
रंग महल मं पड़दा झुकायै,
ठण्डी पवन लग नहीं पायै,
अङ्गीठी तपत भवन धरवाई,
गोबिन्द पौष बडा पावो,
जुल्मी जाडो भोत पड़ै छै,
गोबिन्द पौष बडा खावो।।(२)
पौष बडा मं केसर घाल्या,
अदरक री चटणी रुचकारी,
सब्जी हलवो पूड़ी न्यारी,
गोबिन्द पौष बडा पावो,
जुल्मी जाडो भोत पड़ै छै,
गोबिन्द पौष बडा खावो।।(३)
जमणां जळ झारी भरवाई,
गोबिन्द आचमन करबा ताई,
बिडलो पांच कुट रो हाजर,
गोबिन्द पौष बडा पावो,
जुल्मी जाडो भोत पड़ै छै,
गोबिन्द पौष बडा खावो।।(४)
कवै “रामधन” अरजी मानो,
प्रीत पुराणी मन मं जाणो।
सखियां ठाडी न्होरा खावै,
गोबिन्द पौष बडा पावो,
जुल्मी जाडो भोत पड़ै छै,
गोबिन्द पौष बडा खावो।।(५)
जुल्मी जाडो भोत पड़े छै,
गोबिन्द पौष बडा खावो।।