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अरिहंतो का ध्यान धरो,
निर्ग्रंथों का मान करो,
जिनवाणी को शीश नमाकर,
धरो हृदय साभार,
कि तेरा मानुष जनम अनमोल,
अरिहंतो का ध्यान धरों।।
अनादि से कर्मों ने,
तुझको सताया,
कभी आत्म अनुभव का,
अवसर ना आया,
बड़े भाग्य से तूने,
जिन धर्म पाया,
दयालु गुरु ने है,
तुझको पठाया,
कि इनके वचनों को,
अंतर में घोल,
अरिहंतो का ध्यान धरों।।
समय आ गया अब तो,
मिथ्यात्व छोड़ो,
बस एक वीतरागी से,
सम्बन्ध जोड़ो,
गलत बह रही,
भाव धारा को मोड़ो,
सही ज्ञान से शैल,
कर्मो को तोड़ो,
स्वयं ही मुक्ति के,
द्वारों को खोल,
अरिहंतो का ध्यान धरों।।
अरिहंतो का ध्यान धरो,
निर्ग्रंथों का मान करो,
जिनवाणी को शीश नमाकर,
धरो हृदय साभार,
कि तेरा मानुष जनम अनमोल,
अरिहंतो का ध्यान धरों।।